Pandit Deendayal Upadhyaya को कहा जाता था गरीबों-दलितों की आवाज, जानिए रोचक बातें
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By Admin
Published - 25 September 2023 138 views
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी भारत की एक ऐसी हस्ती थे, जिन्होंने अपने विचारों और कार्यों से लोगों को प्रभावित किया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय महान राजनेता होने के साथ भारतीय जन संघ पार्टी के अध्यक्ष थे। वर्तमान समय में इस पार्टी को भारतीय़ जनता पार्टी के नाम से जाना जाता है। उन्होंने भारत की आजादी के बाद लोकतंत्र को अलग परिभाषा देते हुए देश के निर्माण के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए थे। आज ही के दिन यानी की 25 सितंबर को पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म हुआ। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। इनका जन्म उत्तरप्रदेश के मथुरा में 25 सितम्बर, 1916 को एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। साल 1918 में ढाई साल की उम्र में पंडित दीनदयाल के पिता का निधन हो गया था। जिसके बाद भरण-पोषण की जिम्मेदारी पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाना ने संभाला। छोटी उम्र में ही उनके सिर से मां का साया भी उठ गया। हालांकि उनका पालन-पोषण ननिहाल में काफी बेहतर तरीके से हुआ। 10 साल की उम्र में दीनदयाल उपाध्याय के नाना का भी देहांत हो गया। वहीं साल 1934 में उनके भाई की भी बीमारी से मृत्यु हो गई। जिसके कारण पंडित दीनदयाल उपाध्याय दुखी व अकेले हो गए थे।
पंडित दीनदयाल ने सीकर से हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी की। वहीं स्कूल और कॉलेज में उन्होंने कई स्वर्ण पदक एवं प्रतिष्ठित पुरस्कार जीते। इसके बाद उन्होंने पिलानी में जीडी बिड़ला कॉलेज से 12वीं की शिक्षा प्राप्त की। फिर कानपुर विश्वविद्यालय के सनातन धार्मिक कॉलेज से अपनी बीए की परीक्षा पास की। इसके बाद वह अंग्रेजी साहित्य में एमए करने के लिए आगरा चले गए। लेकिन कुछ कारणों से उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही रोक दी। इस दौरान उनकी बहन का भी निधन हो गया। फिर पंडित दीनदयाल ने सिविल परीक्षा दी, जिसे उन्होंने पास कर लिया। लेकिन आम जनता की सेवा में रुचि होने के कारण उन्होंने यह नौकरी नहीं की।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का साथ
साल 1937 में वह अपने दोस्त बलवंत महाशब्दे के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में शामिल हुए। इस दौरान उनकी मुलाकात संघ के संस्थापक केबी हेडगेवार से हुई और पंडित दीनदयाल ने खुद को पूरी तरह से संगठन में समर्पित करने का फैसला किया। साल 1942 में वह पूरी तरह से संघ में जुड़कर काम करने लगे। फिर वह संघ के प्रचारक के रूप में काम करने लगे। साल 1955 में पंडित दीनदयाल ने उत्तरप्रदेश के लखीमपुर जिले में प्रचारक के रूप में काम किया।
भारतीय जनसंघ का निर्माण
भारतीय जन संघ का निर्माण साल 1951 में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने किया था। पहले उत्तरप्रदेश शाखा के महासचिव और बाद में अखिल भारतीय महासचिव के रूप में दीनदयाल उपाध्याय जी की नियुक्ती हुई। दीनदयाल उपाध्याय की बुद्धिमत्ता और विचारधारा से मुखर्जी भी काफी ज्यादा प्रभावित थे। साल 1953 में मुखर्जी के निधन के बाद संघ की जिम्मेदारी दीनदयाल उपाध्याय के पास आ गई। वह करीब 15 सालों तक संघ से जुड़े रहे। इस दौरान यह भारत की मजबूत राजनीतिक पार्टी में से एक बन गई और दीनदयाल इस पार्टी के अध्यक्ष बने।
फिर दीनदयाल उपाध्याय लोकसभा चुनाव के लिए भी खड़े रहे। लेकिन इस दौरान वह लोगों को अपनी ओर करने में नाकामयाब रहे। जिसके कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा पंडित दीनदयाल उपाध्याय लेखक भी थे। देश की आजादी से पहले उन्होंने लखनऊ में एक मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’ का प्रकाशन किया, जिसके बाद उनके इस गुण की पहचान हुई थी।
मृत्यु
समाज सेवा और सुधारों के कार्यो के चलते पंडित दीनदयाल उपाध्याय को जनसंघ पार्टी ने अपना अध्यक्ष घोषित किया। वह एक आलराउंडर नेता के तौर पर जाने जाते थे। हालांकि अध्यक्ष के पद पर वह सिर्फ 43 दिन कार्यरत रहे। क्योंकि 44वें दिन 11 फरवरी सन 1968 की सुबह पंडित दीनदयाल उपाध्याय को मुगल सराई रेलवे स्टेशन के पास मृत पाया गया। बताया जाता है कि वह वजट सत्र के लिए पटना यात्रा पर जा रहे थे। लेकिन मुगलसराय स्टेशन के पास बोगी ट्रेन से अलग हो गई और उनकी ट्रेन में चोरों ने हमला कर दिया। इसी हमले में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या कर दी गई। हालांकि यह एक अनुमान है, उनकी मौत आज भी अनसुलझा रहस्य है।
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